‘महिला संवाद’ ने ग्रामीण बिहार में रचा सशक्तिकरण का नया अध्याय

पटना, (खौफ 24) ज़िले के गाँवों में सामाजिक परिवर्तन की एक नई कहानी आकार ले रही है। लंबे समय तक घरेलू भूमिकाओं तक सीमित मानी जाने वाली महिलाएं अब सामाजिक संवाद, नेतृत्व और नीति निर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। इस परिवर्तन के केंद्र में है ‘महिला संवाद’—एक ऐसा जन-जागरूकता अभियान जिसने ग्रामीण महिलाओं को न केवल आवाज़ दी, बल्कि उन्हें ज़मीनी स्तर पर निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा भी बना दिया। यह पहल अब पारंपरिक सरकारी कार्यक्रमों की सीमाओं को पार कर एक जनांदोलन का स्वरूप ले चुकी है। ‘महिला संवाद’ वर्तमान में पटना जिले के इक्कीस प्रखंडों में सक्रिय है और इसके अंतर्गत 1122 ग्राम संगठनों के माध्यम से लगभग 2 लाख 30 हज़ार महिलाएं प्रत्यक्ष रूप से जुड़ चुकी हैं।

इन आँकड़ों की निरंतर वृद्धि इस बात का संकेत है कि यह पहल महिलाओं के भीतर गहरे आत्मविश्वास और सामाजिक भागीदारी की भावना को जन्म दे रही है।आज, 15 मई को आयोजित संवाद सत्रों में 8950 से अधिक महिलाओं की भागीदारी इस अभियान की व्यापक पहुँच और प्रभाव को स्पष्ट रूप से दर्शाती है। इन सत्रों में नवसृजित पंचायतों की निर्वाचित प्रतिनिधियाँ, स्वयं सहायता समूहों की सदस्याएँ, किशोरी क्लबों की युवा प्रतिभागी और विभिन्न स्कूल-कॉलेजों की छात्राएँ शामिल रहीं। उन्होंने न केवल अपने अनुभवों को साझा किया, बल्कि सरकारी योजनाओं की पहुँच, उनकी उपयोगिता और संभावित सुधारों पर भी विस्तार से चर्चा की।अभियान की पहुँच को गाँव-गाँव तक सुनिश्चित करने के लिए जिले भर के 44 स्थानों पर 22 संवाद रथों को तैनात किया गया है।

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ये मोबाइल संवाद वाहन आधुनिक तकनीकों से सुसज्जित हैं और इनमें एलईडी स्क्रीन के माध्यम से सरकारी योजनाओं की जानकारी, ऑडियो-विज़ुअल माध्यम से प्रेरणादायक कहानियाँ, संवादात्मक गतिविधियाँ और महिला अधिकारों पर केंद्रित लघु फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं। अब तक इन रथों के माध्यम से लाखों महिलाओं तक संवाद का संदेश प्रभावशाली ढंग से पहुँच चुका है।संवाद सत्रों में ग्रामीण महिलाओं ने खुलकर अपने विचार रखे। वृद्धावस्था पेंशन की राशि बढ़ाने की आवश्यकता, गाँवों में महाविद्यालयों की स्थापना, सड़क संपर्क को बेहतर बनाने, नियमित सरकारी परिवहन सेवाओं की उपलब्धता, स्वरोज़गार के लिए कौशल प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता की आवश्यकता, किशोरियों के लिए सुरक्षित स्थानों और पुस्तकालयों की स्थापना जैसे मुद्दे प्रमुख रूप से सामने आए।

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साथ ही, स्वयं सहायता समूहों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने की माँग ने यह स्पष्ट किया कि महिलाएं अब केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि नीति निर्माण में भागीदार की भूमिका निभा रही हैं।दनियावां प्रखंड के कुंडल ग्राम संगठन में आयोजित एक सत्र में उस समय भावनात्मक दृश्य देखने को मिला, जब एक सरकारी विद्यालय की महिला शिक्षिका, जो विवाह समारोह के सिलसिले में गाँव आई थीं, मंच पर आईं और उन्होंने अपने जीवन संघर्ष की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि कैसे आरक्षण नीति ने उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने और सामाजिक पहचान बनाने का अवसर दिया। उनकी कहानी ने वहाँ मौजूद सभी महिलाओं को प्रेरणा से भर दिया और ग्राम संगठन द्वारा उनके सम्मान ने यह सिद्ध कर दिया कि अब ग्रामीण समाज महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मान की दृष्टि से देखता है।

इसी सत्र में जीविका से जुड़ी मीरा देवी ने अपनी यात्रा साझा की। उन्होंने बताया कि स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के बाद उन्होंने दो गायें खरीदीं और दूध विक्रय कर अपने परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। आज उनके बच्चे स्कूल जा रहे हैं और घर की आमदनी में उनका योगदान स्थायी रूप से बना हुआ है। मीरा देवी की यह बात”पहले हम चुप रहते थे, अब बोलते हैं… और हमें सुना भी जा रहा है”—महिलाओं की बदली हुई मानसिकता और सामाजिक भूमिका की सटीक अभिव्यक्ति बन गई।

इन संवादों से प्राप्त सुझावों और फीडबैक को एक विशेष डिजिटल टीम द्वारा संकलित किया जा रहा है। यह टीम अत्याधुनिक डैशबोर्ड प्रणाली का उपयोग करते हुए सभी बिंदुओं को जिला प्रशासन और राज्य सरकार तक पहुँचा रही है, ताकि योजनाओं का कार्यान्वयन ज़मीनी ज़रूरतों के अनुरूप और अधिक प्रभावशाली ढंग से किया जा सके।

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