
देवी के उग्र रूप काली की पूजा की परंपरा आज भी जीवित है
देश भर में दीपावली को लेकर जहां उत्सव का माहौल देखने को मिला, दीपों के इस पर्व के साथ-साथ अमावस्या की रात काली पूजा का विशेष महत्व भी देखा गया। परंपरा के अनुसार, मध्यरात्रि में मां काली की विधिविधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसी परंपरा को निभाते हुए पटना सिटी के चौक स्थित झाऊगंज के पास मां काली की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई, जहां भक्तों ने पूरी श्रद्धा और मंत्रोच्चारण के साथ मां की पूजा की। मां की आरती के दौरान श्रद्धालु उपस्थित रहे और “जय मां काली” के जयकारों से पूरा इलाका गूंज उठा।
पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस का वध करने के बाद जब मां महाकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ, तो भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव को देखकर मां काली का क्रोध शांत हो गया। इसी घटना के उपलक्ष्य में देवी के शांत स्वरूप लक्ष्मी की पूजा आरंभ हुई, वहीं कुछ राज्यों में उसी रात देवी के उग्र रूप काली की पूजा की परंपरा आज भी जीवित है। काली पूजा से बुरी शक्तियों का नाश होता है और साधक को सफलता एवं कल्याणकारी फल प्राप्त होता है। जहां दिवाली के दिन प्रदोष काल में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है, वहीं आधी रात को मां काली की पूजा का विशेष विधान है।