बोकारो समेत कई शहरों में रांग साइड ड्राइविंग से बढ़ीं दुर्घटनाएं

झारखंड(खौफ 24): तमाम शहरों में एंट्री और एग्जिट स्थलों पर बड़े-बड़े साइनेज लगे हैं लेकिन शहर में प्रवेश करते ही साइनेज का आकार छोटा होता जाता है और दूर से देखने की संभावनाएं क्षीण होती जाती हैं। यही कारण है कि अस्पतालों और प्रमुख भवनों के आसपास लगे छोटे-छाेटे साइनेज जिसपर साइलेंस जोन, नो एंट्री अथवा वन-वे एंट्री के निशान बने होते हैं लोगों को दिखते ही नहीं। कई बार ऐसे मामलों की अनदेखी हादसों का आधार बनती है।इसलिए रांग साइड ड्राइविंग करते वाहन चालक,राजधानी रांची बोकारो, धनबाद, देवघर आदि शहरों में प्रवेश मार्ग पर उल्टी दिशा में चलते वाहन अक्सर दिख जाते हैं। इसका एक मात्र कारण है एनएच पर लंबी दूरी में कट का होना जिससे लोग अपना साइड बदलने के बदले रांग साइड ड्राइविंग का विकल्प अपनाते हैं। कई बार साइनेज ऐसी जगहों पर लगे होते हैं तो आसानी से दिखाई नहीं देते और दुर्घटना होने के बाद अधिकारियों के संज्ञान में आता है।

दर्जनों हादसे इसकी गवाही दे रहे हैं और कई हादसों में लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है।जाम में रुकते नहीं लोग, चलते हैं रांग साइड में,रांग साइड ड्राइविंग को रोकने में पुलिस पूरी तरह नाकाम रही हैं। कभी भी सड़कों पर जाम की स्थिति को देखने के बाद अधिसंख्य दो पहिया वाहन रांग साइड ड्राइविंग का विकल्प अपनाते हैं और इन्हीं के पीछे-पीेछे दूसरे बड़े वाहन भी रास्ता बना लेते हैं। ऐसा लगता है जैसे लोगों को पता ही नहीं कि इसके लिए जुर्माना भी लग सकता है।दिखते नहीं छोटे साइनेज, इसीलिए बजते हैं हार्न,अस्पतालों, न्यायालयों और स्कूलों के इर्द-गिर्द साइलेंस जोन घोषित होते हैं और कई जगहों पर इससे संबंधित साइनेज भी लगे हैं लेकिन इन इलाकों में लोग धड़ल्ले से वाहनों में हार्न का प्रयोग करते दिख जाते हैं। इसका अहम कारण है कि छोटे-छोटे साइनेज कहीं पेड़ तो कहीं झाड़ियों में गुम गए हैं अथवा सामान्य तौर पर दिखते ही नहीं। कुछ इलाकों में नो एंट्री में वाहनों के प्रवेश कर जाने का कारण भी यही है।

एक बार वाहन प्रवेश कर गए तो कुछ ना कुछ देकर*रांची, धनबाद, बोकारो समेत कई शहरों में रांग साइड ड्राइविंग से बढ़ीं दुर्घटनाएं यातायात के लिए आधारभूत सुविधाओं पर गौर करें तो किसी भी शहर में साइनेज की अहम भूमिका होती है जिससे आम और खास लोगों को आने-जाने एवं अन्य कार्यों में सुविधाएं होती हैं।झारखंड के तमाम शहरों में एंट्री और एग्जिट स्थलों पर बड़े-बड़े साइनेज लगे हैं लेकिन शहर में प्रवेश करते ही साइनेज का आकार छोटा होता जाता है और दूर से देखने की संभावनाएं क्षीण होती जाती हैं। यही कारण है कि अस्पतालों और प्रमुख भवनों के आसपास लगे छोटे-छाेटे साइनेज जिसपर साइलेंस जोन, नो एंट्री अथवा वन-वे एंट्री के निशान बने होते हैं लोगों को दिखते ही नहीं। कई बार ऐसे मामलों की अनदेखी हादसों का आधार बनती है।इसलिए रांग साइड ड्राइविंग करते वाहन चालक,राजधानी रांची बोकारो धनबाद, देवघर आदि शहरों में प्रवेश मार्ग पर उल्टी दिशा में चलते वाहन अक्सर दिख जाते हैं। इसका एक मात्र कारण है एनएच पर लंबी दूरी में कट का होना जिससे लोग अपना साइड बदलने के बदले रांग साइड ड्राइविंग का विकल्प अपनाते हैं। कई बार साइनेज ऐसी जगहों पर लगे होते हैं तो आसानी से दिखाई नहीं देते और दुर्घटना होने के बाद अधिकारियों के संज्ञान में आता है। दर्जनों हादसे इसकी गवाही दे रहे हैं और कई हादसों में लोगों ने अपनी जान भी गंवाई है।जाम में रुकते नहीं लोग, चलते हैं रांग साइड में रांग साइड ड्राइविंग को रोकने में पुलिस पूरी तरह नाकाम रही हैं। कभी भी सड़कों पर जाम की स्थिति को देखने के बाद अधिसंख्य दो पहिया वाहन रांग साइड ड्राइविंग का विकल्प अपनाते हैं और इन्हीं के पीछे-पीेछे दूसरे बड़े वाहन भी रास्ता बना लेते हैं।

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ऐसा लगता है जैसे लोगों को पता ही नहीं कि इसके लिए जुर्माना भी लग सकता है।दिखते नहीं छोटे साइनेज, इसीलिए बजते हैं हार्न अस्पतालों, न्यायालयों और स्कूलों के इर्द-गिर्द साइलेंस जोन घोषित होते हैं और कई जगहों पर इससे संबंधित साइनेज भी लगे हैं लेकिन इन इलाकों में लोग धड़ल्ले से वाहनों में हार्न का प्रयोग करते दिख जाते हैं। इसका अहम कारण है कि छोटे-छोटे साइनेज कहीं पेड़ तो कहीं झाड़ियों में गुम गए हैं अथवा सामान्य तौर पर दिखते ही नहीं। कुछ इलाकों में नो एंट्री में वाहनों के प्रवेश कर जाने का कारण भी यही है। एक बार वाहन प्रवेश कर गए तो कुछ ना कुछ देकर ही जाएंगे। या तो सरकारी खजाने में देंगे या फिर पुलिस की जेब भरेंगे।


कुछ ही दिनों में नो एंट्री व वन-वे नियम बिखर जाते,शहरों के कई इलाकों में नो एंट्री और वन-वे रूट से संबंधित नियम बनाए गए हैं लेकिन ये नियम कुछ ही दिनों में इतनी बार टूटते हैं कि आखिरकार बिखर जाते हैं। पुलिस भी लोगों से जुर्माना वसूलने के बाद विरोध का सामना करने से बेहतर विकल्प खोजते हैं और शांति से बैठ जाते हैं। राजधानी रांची का अपर बाजार इलाका इसका बड़ा उदाहरण है जहां वन-वे रूट के कारण शुरू में लोगों को कष्ट हुआ और बाद में पुलिस ही भूल गई। अब त्यौहारों के वक्त ही पुलिस इन नियमों को याद रखती है। ही जाएंगे। या तो सरकारी खजाने में देंगे या फिर पुलिस की जेब भरेंगे।
कुछ ही दिनों में नो एंट्री व वन-वे नियम बिखर जाते।शहरों के कई इलाकों में नो एंट्री और वन-वे रूट से संबंधित नियम बनाए गए हैं लेकिन ये नियम कुछ ही दिनों में इतनी बार टूटते हैं कि आखिरकार बिखर जाते हैं। पुलिस भी लोगों से जुर्माना वसूलने के बाद विरोध का सामना करने से बेहतर विकल्प खोजते हैं और शांति से बैठ जाते हैं। राजधानी रांची का अपर बाजार इलाका इसका बड़ा उदाहरण है जहां वन-वे रूट के कारण शुरू में लोगों को कष्ट हुआ और बाद में पुलिस ही भूल गई। अब त्यौहारों के वक्त ही पुलिस इन नियमों को याद रखती है।

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