
ब्रेस्ट कैंसर अगर शुरुआती दौर में पहचान हो जाए तो उसका इलाज संभव है
पटना, अजीत। ब्रेस्ट कैंसर का अगर शुरुआती दौर में पहचान हो जाए तो उसका इलाज संभव है। पूर्वतः स्तन कैंसर के इलाज का पारंपरिक तरीका मॉडिफाइड रेडिकल मास्टेक्टॉमी (एमआरएम) रहा है जहाँ सर्जरी के द्वारा पूरे स्तन और बगल से लिम्फ नोड को हटा दिया जाता है और अधिकांश अस्पताल में इसका उपयोग किया जा रहा है। वहीं जय प्रभा मेदांता सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, पटना में सेंटीनल लिम्फ नोड डाइसेक्शन (एस.एल.एन.डी.) जैसी अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जा रहा है जिससे ब्रेस्ट सर्जन लिम्फ नोड्स के कैंसर क्षेत्र का विश्लेषण करने में सक्षम हो गयें हैं जिसके परिणामस्वरूप स्तन के साथ-साथ बगल के अंगों और कोशिकाओं का संरक्षण भी होता है। एस.एल.एन.डी. एक क्रांतिकारी प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया में सर्जन डाई डालते हैं जो कैंसर कोशिकाओं के साथ प्रतिक्रिया करती है और कैंसर कोशिकाओं के साथ-साथ अन्य संक्रमित अंगों की उपस्थिति को दर्शाती है।
इस सर्जरी के द्वारा केवल कैंसर संक्रमित कोशिकाओं अथवा अंगों को हटाया जाता है। सामान्यतः जब स्तन के गाँठ लेकर मरीज आते हैं तो सर्जरी के दौरान संक्रमित अंग के हिस्से को फ्रीज करके जाँच के लिए अस्पताल में स्थित अत्याधुनिक पैथोलॉजी में भेजा जाता है जहाँ तात्कालिक परीक्षण करके संक्रमण के बारे में सर्जरी के दौरान ही पता चल जाता है। इससे कैंसर संक्रमण की सही स्थिति एवं सटीकता मिल जाती है। जय प्रभा मेदांता सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, पटना में सेंटीनल लिम्फ नोड डाइसेक्शन (एस.एल.एन.डी.) के द्वारा स्तन कैंसर के सर्जरी को सफलतापूर्वक नियमित कार्यान्वित किया जाता है एवं इस विधि के कारण स्तन कैंसर के मरीजों को त्वरित सही एवं सटीक इलाज मिल रही है।
इसी क्रम में हाल में बिहार के समस्तीपुर की रहने वाली 50 वर्षीय महिला संजू देवी की सर्जरी सफलतापूर्वक सेंटीनल लिम्फ नोड डाइसेक्शन (एस.एल.एन.डी.) के द्वारा किया गया। आर्थिक संकट से जूझ रही संजू देवी जी को एक सरकारी मेडिकल कॉलेज ने यहां मेदांता और बिहार सरकार के संयुक्त रेफरल प्रोग्राम के अंतर्गत इलाज कराने के लिए रेफर किया था। उनकी मेडिकल हिस्ट्री में बताया गया है कि वह पांच वर्षों तक अपने बच्चे को स्तनपान कराया था।
जांच करने पर उसके स्तन में 2×2 सेमी की गांठ मिली जो कि बायें स्तन में थी। डायग्नोस्टिक इमेजिंग, मेमोग्राफी तथा अल्ट्रासाउंड में बायें स्तन में 2. 57 सीएम की एक गांठ 11.8 एमएम और एक 9.4 एमएम की गांठ थी। बायीं कांख बिल्कुल सामान्य थी। पेट-सिटी टेस्ट में बायें स्तन में कैंसर की पुष्टि की गयी। पुष्टि के बाद मेदांता एडवांस कम्प्रिहेंसिव कैंसर केयर के ख्यातिप्राप्त डॉक्टरों की टीम ने एस.एल.एन.बी. का उपयोग करते हुए उनकी सर्जरी की और संक्रमित अंगों और कोशिकाओं को निकाल दिया ।
ब्रेस्ट सर्जन डॉ. निहारिका रॉय ने इस सन्दर्भ में बताया कि अगर एस.एल.एन.डी. तकनीक का उपयोग ना करके पारम्परिक तरीके से सर्जरी करने पर स्तन के निकालने के साथ ही कांख की भी सर्जरी करनी पड़ती क्योंकि स्तन का कैंसर सदा कांख की ओर बढ़ता है और कांख की सर्जरी से हाथ के फूलने, भारीपन के साथ सुन्न होने की संभावना रहती है। मरीज के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा की सफल सर्जरी के बाद अब उस महिला को कीमोथेरेपी दिया जा रहा है और वह ठीक है।
डॉ. निहारिका ने आगे बताया अभी तक 20 से अधिक स्तन कैंसर के मरीजों को इस तकनीक का उपयोग करते हुए ऑपरेशन किया गया है और वे सभी स्वस्थ हैं। उन्होंने कहा कि महिला की छाती में 80 प्रतिशत गांठ कैंसर नहीं होती है, सिर्फ 20 प्रतिशत गांठ में ही कैंसर होने की संभावना रहती है। 40 वर्ष की आयु के बाद किसी महिला के स्तन में गांठ मिले तो उसे फौरन डॉक्टर से दिखा लेना चाहिए। शुरुआती दौर में स्तन में छोटा चीरा लगाकर उसे ठीक किया जा सकता है और पूरे स्तन को बचाया जा सकता है।
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