वर्षों से जलविषेक की परम्परा टूटने शिवभक्तों के बीच नाराजगी

सुधांशु पांडेय : बिहार राज्य के प्रसिद्ध गौरीशंकर मंदिर बैकठपुर में वैशाख माह में वैशाखी जल धारा आज से नहीं बल्कि वर्षो वर्ष से भगवान भोले के संयुक्त शिवलिंग पर चढ़ाई जाती रही है।

मान्यताओं के अनुसार इसकी शुरुआत 14 तारीख से ही किया जाना था। बाबजूद मंदिर के जिम्मेदारों ने इसकी देख भाल नही किया। जिसके वजह से यह वर्षो पुरानी परंपरा में व्यवधान उत्पन्न हो गई। इस बात से राज्य के शिव भक्तों के बीच खासे नाराजगी देखा गया। जबकि इस बात से बेखबर प्रशासन और प्रबंधन समिति दोनो है या इस महत्ता को आधुनिक युग की भेट चढ़ा दिया गया। यह साफ दिखाई पड़ रहा है। आदि काल से चली आ रही इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन नहीं होना बहुत ही दुखद है।

पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था, तो इसमें से एक विष का प्याला भी उत्पन्न हुआ था, जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। तब देवों के देव महादेव ने इस विष का पान किया था।

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ऐसा माना जाता है कि वैशाख में जब बहुत अधिक गर्मी पड़ने लगती है, तो इससे भगवान शिव के गले में मौजूद विष के कारण उनके शरीर का तापमान बढ़ने लग जाता है। ऐसे में तापमान को नियंत्रित रखने के लिए शिवलिंग पर गलंतिका बांधी जाती है। इससे बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है और ठंडक बनी रहती है।

वहीं इस संदर्भ में बैकठपुर के लडडू बाबा और कुंदन पांडे ने बताया कि वैशाख माह में शिवलिंग के ऊपर बॉक्स में बने खांचे में रखे पवित्र पात्र रखने की परंपरा रही है। इस पात्र से निरंतर बूंद-बूंद जल गिरता रहता है और शिवलिंग का निरंतर जलाभिषेक की व्यवस्था भंग कर न्यास समिति ने बहुत बड़ी गलती कर डाली है। इस बात से श्रद्धालुओं के बीच काफी नाराजगी उभरकर सामने आ रही है। इसे जल्द से जल्द ठीक होना चाहिए।

वहीं मंदिर समिति के सदस्य अखिलेश पांडेय ने बताया कि पहले लोग बॉक्स में गंगा का जल लाकर डाला करते थे, और अब कोई बॉक्स में जल नहीं भरता है। हमलोग इसमें नल का पानी डाल नहीं सकते हैं। इतना ही नहीं शिव लिंग पर जो जल गिरता है वह मशीन के जरिए गिरता है वह मशीन है इसलिए खराब हो गई,जिसे बनवाया भी गया है। जिससे अब निरंतर जल चढ़ता है। श्रद्धालुओं को इस बॉक्स में गंगा जल भरने की आवश्यकता है।

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