किसान पुत्र, खाकी वर्दी वाला योद्धा : मृत्युंजय कुमार सिंह

बिहार पुलिस एसोसिएशन प्रदेश अध्यक्ष, मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा भारत एक कृषि प्रधान देश है, और यहां के किसानों को ‘अन्नदाता’ कहा जाता है वे जो तमाम कठिनाइयों और प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हुए भी देश को अन्न प्रदान करते हैं। जो अपनी परिस्थितियों को मात देकर जीवन की विषम राहों में विजय प्राप्त करता है, वही सच्चा योद्धा कहलाता है।और वह योद्धा है “किसान”।


मैं, मृत्युंजय कुमार सिंह, एक किसान पुत्र हूं और आज खाकी वर्दी धारण करने वाला प्रहरी भी। मेरे परिवार की आजीविका का मुख्य आधार खेती रहा है। नक्सल गतिविधियों और वर्षा पर निर्भरता के कारण कृषि कार्य में लगातार बाधाएं आती रहीं। किसान पुत्र होने के कारण प्रारंभिक जीवन आर्थिक संघर्षों से भरा रहा।आज भी याद है मैट्रिक की परीक्षा देने जाते समय कपड़ों की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं थी। आरा जैन कॉलेज में कक्षाएं करने के लिए फुआ के यहां से पुरानी साइकिल लेकर आया था। रोड पर बिकने वाले चप्पल पहन कर कॉलेज जाना, जिनकी एड़ी कुछ ही दिनों में घिस जाती थी, और जब अन्य मित्र ब्रांडेड जींस पहनते थे, तब सस्ते बाजार से जींस खरीद कर मन को सांत्वना देना ये सब मेरे जीवन के हिस्से रहे हैं। जेब में पैसे का अभाव मन और मस्तिष्क पर तनाव की रेखाएं खींच देता था। जब गाना सुनने का मन होता था, तो मित्र से टेप रिकॉर्डर मांग कर दिनभर सुनता, और अगली सुबह लौटा देता था।

हर किसान पुत्र का जीवन संघर्षों से भरा होता है कुछ अपवादों को छोड़कर। जैसे किसान खेतों में धूप, ठंड और बारिश की परवाह किए बिना डटा रहता है, वैसे ही मैं आज कानून-व्यवस्था की रक्षा के लिए हर परिस्थिति में कर्तव्यपथ पर अडिग हूं।मुझे आज भी वह समय याद है जब बिहार नक्सलवाद से त्रस्त था। उस समय खेतों में कुदाल चलाना, धान की रोपाई में बीज पहुंचाना, कटाई के बाद बोझा उठाकर खलिहान तक ले जाना, गेहूं की थ्रेशिंग करना ये सब मेरे जीवन का हिस्सा थे। मिट्टी में लोटते, धूल से अटखेलियां करते हुए मैंने अपने जीवन की नींव गांव की गोद में रखी। गांव और खेती से मेरा जुड़ाव आज भी गहरा है। आज भी जब वर्षा होती है, तो मन पुलकित हो उठता है। मैं तुरंत फोन लगाकर पूछता हूं “गांव में कितनी बारिश हुई?” खेत की मिट्टी की सोंधी महक आज भी आत्मा में रची-बसी है।हमने जीवन से यही सीखा है। बेहतर दिनों के लिए बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है। हर किसान का सपना होता है कि उसका बेटा पढ़-लिखकर अफसर बने, परिवार, गांव और राज्य का गौरव बने। मैं उन्हीं सपनों का प्रतिनिधि हूं ।जो आज अपने गांव और प्रदेश का नाम ऊंचा करने का प्रयास कर रहा हूं।

1994 में जब मैंने पुलिस सेवा जॉइन की, तब से विभाग में मुझे पहचान मिली। साथियों की समस्याओं के समाधान और पुलिस कल्याण की भावना के साथ मुझे बिहार पुलिस एसोसिएशन का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया। विगत 16 वर्षों से यह दायित्व मुझे लगातार सौंपा जा रहा है — यह मेरी स्पष्टता, विचारधारा और कर्मठता पर विश्वास का प्रतीक है।

अध्यक्ष रहते हुए, कनीय पुलिसकर्मियों को पर्व-त्योहारों पर कर्तव्य निभाने के एवज में 13वें महीने का वेतन दिलवाना मेरी प्रमुख उपलब्धियों में से एक रही है। समस्याओं की आवाज़ उठाने पर कई बार सरकार और पुलिस मुख्यालय से टकराव की स्थिति भी उत्पन्न हुई। कठिनाइयां आईं, लेकिन सत्य की आवाज़ कभी कमजोर नहीं पड़ी।

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पुलिस सेवा के दौरान ज़िला पुलिस और एसटीएफ में रहते हुए 14 कुख्यात अपराधियों के एनकाउंटर में मेरी सक्रिय भूमिका रही, जिसके लिए मुझे राष्ट्रपति वीरता पदक से सम्मानित किया गया। इसके अलावा सैकड़ों अपराधियों की गिरफ्तारी और अत्याधुनिक हथियारों की बरामदगी पर अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले। मेरा दृढ़ विश्वास है कि अपराधियों को उनकी भाषा में उत्तर देना चाहिए लेकिन कानून के दायरे में रहकर।

मुझे अपने वीर पुलिसकर्मियों पर गर्व है, जो परिवार से दूर रहकर भी जनसुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए समर्पित रहते हैं। मुझे अपने स्वाभिमान, स्पष्टवादिता और भारत की सनातन संस्कृति पर गर्व है।

मैं हमेशा कर्मयोग, स्वाभिमान और साहस के मूल्यों का समर्थन करता हूं।
सम्राट विक्रमादित्य, चाणक्य, महाराणा प्रताप, बाबू कुँवर सिंह, स्वामी विवेकानंद और डॉ. अब्दुल कलाम जैसे महापुरुषों की जीवनियां मेरे प्रेरणास्रोत हैं।
मेरा सपना है — भारत एक महाशक्ति और विश्वगुरु बने, जिसमें प्रेम, भाईचारा और संस्कृति का अद्भुत संगम हो।

आज तक की यात्रा में मैंने कभी चाटुकारिता नहीं की, न किसी की परछाईं बना। अपने विचार, संघर्ष और आत्मबल से मैंने अपनी पहचान बनाई है।
मेरा विश्वास है —

“अगर पहचान बनानी है, तो खुद को इतना सक्षम बनाओ कि नाम से पहले लोग सम्मान से सिर झुका दें।”

यह रास्ता कठिन है, पर मेरा संकल्प अडिग है।

“न झुकूंगा, न रुकूंगा, न हार मानूंगा, क्योंकि मुझे पता है — अगर किसान का बेटा ठान ले, तो मिट्टी से भी सोना उगा सकता है।”

मेरी राह कठिन रही है, पर लक्ष्य सदा ऊंचा।सकारात्मक सोच, सत्यनिष्ठ प्रयास और हर हर महादेव – माँ पीतांबरा का आशीर्वाद मेरे जीवन का आधार स्तंभ हैं।

अंत में यही कहूंगा:

जो तप में खुद को तपाता है, वही योद्धा बन पाता है।
चल पड़े जो वीर पथिक, फिर रुकने का नाम नहीं।
कहने दो जिसे जो कहना है, अब सुनना उसका काम नहीं।
कर्म जिनका शस्त्र बन चुका, उन्हें चाहिए किसी का एहसान नहीं।
त्याग मांगता है यह पथ उनसे, बिना त्याग कोई श्रीराम नहीं।

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