
आंगनवाड़ी केंद्र : सिर्फ पोषण नहीं, बच्चों की नींव गढ़ते
पटना, (खौफ 24) आंगनवाड़ी केंद्रों को पारंपरिक रूप से बच्चों को बैठना-सिखाने, भोजन कराने और कुछ स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले स्थान के रूप में जाना जाता रहा है। हालांकि यह भूमिका महत्वपूर्ण है, परंतु 0 से 6 वर्ष के बच्चों के संपूर्ण विकास के संदर्भ में यह दृष्टिकोण अधूरा है जो जीवन के सबसे संवेदनशील और विकासशील चरण में होते हैं। वास्तव में, आंगनवाड़ी केंद्रों की परिकल्पना 0-6 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए की गई थी। इस विकास में शारीरिक, मानसिक, संज्ञानात्मक, सामाजिक-भावनात्मक सभी पहलू शामिल होते हैं। बच्चे की मां के पोषण से लेकर बच्चे के स्वास्थ्य, स्वच्छता, देखभाल और उम्रानुसार सीखने तक, आंगनवाड़ी एक ऐसा केंद्र है जो जीवन की शुरुआत में आवश्यक सभी मूलभूत सेवाओं को एक स्थान पर समेटे हुए है।
आंगनवाड़ी बनाम प्ले स्कूल: एक नई दृष्टि की आवश्यकता-
जब हम बच्चों की शिक्षा और प्रारंभिक सीख की बात करते हैं तो अक्सर हमारी कल्पना निजी ‘प्ले स्कूल’ की ओर चली जाती है। लेकिन क्या हम यह जानते हैं कि सरकारी आंगनवाड़ी केंद्रों में भी प्रारंभिक शिक्षा की अपार संभावनाएं हैं? वास्तव में, उनकी भूमिका और कार्य प्रणाली को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है।
आज के समय मेंयू आंगनवाड़ी को केवल ‘पोषण सामग्री वितरण केंद्र’ के रूप में नहीं, बल्कि एक ‘प्रारंभिक शिक्षा केंद्र’ के रूप में देखने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) भी इस बात पर बल देती है कि 0–6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए बुनियादी शिक्षा की ठोस नींव रखी जानी चाहिए, क्योंकि इसी उम्र में मस्तिष्क का विकास सबसे तीव्र गति से होता है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (नैपी 2020) यह स्पष्ट करती है कि 0 से 6 वर्ष की आयु बच्चों के मस्तिष्क विकास का सबसे महत्वपूर्ण कालखंड है। इस चरण में प्राप्त अनुभव, संवाद, खेल और सीख जीवन में आगे की शिक्षा की गुणवत्ता और सफलता की नींव बनाती है।
स्वस्थ मस्तिष्क के विकास हेतु यह आवश्यक है कि बच्चों को ऐसा परिवेश मिले जिसमें सकारात्मक और योजना आधारित अनुभव सभी विकासात्मक क्षेत्रों (भाषा, संज्ञानात्मक, सामाजिक-भावनात्मक, शारीरिक आदि) को समाहित करें।
इस अवधि के दौरान प्राप्त सकारात्मक, उद्देश्यपूर्ण और खेल आधारित अनुभव बच्चों के भविष्य के शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यवहार और जीवन में सफलता की नींव रखते हैं।
प्रत्येक दिन का खेल और अनुभव बच्चों के मस्तिष्क की संरचना को आकार देता है और उन्हें एक मजबूत भविष्य के लिए तैयार करता है। बच्चा तभी बेहतर सीखता है जब सीखने की प्रक्रिया में आनंद हो। इसलिए किसी भी कार्य को करते समय बच्चों को स्वतंत्रता और लचीलापन देना अत्यंत आवश्यक है।
0–6 वर्ष: विकास का सबसे संवेदनशील चरण
शोध और अनुभव यह स्पष्ट करते हैं कि जीवन के पहले छह वर्ष मस्तिष्क और व्यक्तित्व के निर्माण की नींव रखते हैं। इस दौरान जो भी अनुभव, संवाद, खेल और सीख होती है, वह बच्चों के आगे के सीखने, स्वास्थ्य, व्यवहार और जीवन की दिशा तय करती है। इसलिए इस उम्र में सिर्फ स्वास्थ्य और पोषण ही नहीं, बल्कि पूर्व-प्राथमिक शिक्षा की सुनियोजित व्यवस्था भी अत्यंत आवश्यक है।
पूर्व-प्राथमिक शिक्षा का एकीकृत मॉडल-
आंगनवाड़ी केंद्रों में अब बदलाव की बयार चल रही है। कई राज्यों ने ‘बालवाटिका’ मॉडल को अपनाते हुए बच्चों के लिए संरचित, खेल आधारित और स्थानीय संसाधनों पर आधारित पूर्व-प्राथमिक शिक्षण सामग्री विकसित की है। इसमें ‘आधारशिला’ और ‘पंचकोश’ जैसे दृष्टिकोणों के माध्यम से शारीरिक, संज्ञानात्मक, भावनात्मक, सामाजिक व रचनात्मक विकास को एक साथ जोड़ने का प्रयास किया गया है।
समाज और सरकार की साझेदारी से ही संभव है बदलाव
यदि हम चाहते हैं कि हर बच्चा एक सशक्त भविष्य की ओर बढ़े, तो हमें आंगनवाड़ी केंद्रों को सक्रिय, जीवंत, और समग्र शिक्षा केन्द्रों के रूप में विकसित करना होगा। इसमें केवल सरकार की नहीं, बल्कि समाज, समुदाय, युवाओं, माताओं और स्वयंसेवकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम आंगनवाड़ी की परिकल्पना को नए दृष्टिकोण से देखें। यह केवल बैठने और खाने की जगह नहीं, बल्कि बचपन की नींव को गढ़ने वाला केन्द्र है। जब आंगनवाड़ी में शिक्षा की घंटी बजेगी, तो वह केवल ध्वनि नहीं होगी—वह परिवर्तन के अंकुरण का संकेत होगी।
डॉ कुमारी चंदा सलाहकार, पोषण अभियान, आई०सी ०डी ०एस०निदेशालय, बिहार