संक्रमित होने की स्थिति में सही समय पर कराएं सही इलाज : सीडीओ

पूर्णिया, (खौफ 24) 15 फरवरी किसी से मिलने और हाथ मिलाने से नहीं फैलता है टीबी का संक्रमण| इसलिये टीबी मरीजों की उपेक्षा कतई नहीं करें। उससे अपनत्व की भावना रखते हुए उसे टीबी की सही जांच और सही जगह पर इलाज कराने के लिए प्रेरित करें। किसी भी संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए सतर्क रहना जरूरी है, क्योंकि कोरोना काल के बाद से विशेषकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाले संक्रामक रोगों से बचाव करना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके साथ भीड़भाड़ वाली जगहों पर एहतियात व सुरक्षा के पैमानों को व्यवहार में लाया जाना अभी भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ऐसी ही श्वसन संबंधित संक्रामक बीमारियों में टीबी भी एक महत्वपूर्ण बीमारी है जो फेफड़ों को प्रभावित करता। सिविल सर्जन डॉ प्रमोद कुमार कनौजिया ने कहा कि संक्रमित व्यक्ति के खांसने व बोलने से निकली बूंद में मौजूद टीबी बैक्टीरिया हवा के माध्यम से स्वस्थ्य व्यक्ति तक पहुंचती है जिससे स्वास्थ्य व्यक्ति टीबी ग्रसित हो सकते हैं। लोगों को इसका ध्यान रखना चाहिए ताकि लोग टीबी ग्रसित होने से सुरक्षित रह सकें।

मिथ्याओं से बचें, ताकि उपेक्षित नहीं हो संक्रमित :

सिविल सर्जन डॉ. प्रमोद कुमार कनौजिया ने बताया कि सीडीसी के मुताबिक टीबी संक्रमण को ले कुछ मिथ्याएं भी हैं । इन मिथ्याओं की वजह से लोग टीबी ग्रसित लोगों की उपेक्षा करने लगते हैं। टीबी ग्रसित लोगों के प्रति इस तरह से उपेक्षा किया जाना उसके इलाज में भी असुविधा ही पैदा करती है। आमलोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे टीबी संक्रमण होने के सही कारणों की जानकारी लें। सीडीसी के अनुसार यह रोग हाथ मिलाने, किसी को खानपान की सामग्री देने या लेने, बिस्तर पर बैठने व एक ही शौचालय के इस्तेमाल करने से बिल्कुल भी नहीं फैलता है।

फेफड़ों व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है टीबी : सीडीओ

जिला संचारी रोग नियंत्रण पदाधिकारी (सीडीओ) डॉ कृष्ण मोहन दास ने बताया कि जिस व्यक्ति का रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होता है और वह टीबी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आता है तो टीबी बैक्टेरिया संबंधित व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है। जब वह व्यक्ति सांस लेता है तो बैक्टीरिया फेफड़ों में जाकर बैठ जाती और वहीं बढ़ने लगती है। इस तरह से संक्रमण रक्त की मदद से शरीर के दूसरे अंगों यथा किडनी, स्पाइन व ब्रेन तक पहुंच जाती है।आमतौर पर ये टीबी फैलने वाले नहीं होते हैं। वहीं फेफड़ों व गले का टीबी संक्रामक होता है जो दूसरों को भी संक्रमित कर देता है। लक्षण दिखाई देने पर लोगों द्वारा नजदीकी अस्पताल में अपनी जांच करानी चाहिए जिससे कि समय पर टीबी संक्रमण की पहचान करते हुए उसका इलाज सुनिश्चित किया जा सके और लोग संक्रमण से सुरक्षित रह सकें।

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कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों को संक्रमण की संभावना अधिक :

सीडीओ डॉ दास ने बताया की ट्रयूबरक्लोसिस दो प्रकार के होते हैं : पल्मोनरी टीबी जिसे फेफड़े का टीबी कहा जाता है और दूसरा एक्सट्रा पल्मोनरी जो फेफड़ों के अतिरिक्त शरीर के किसी भी भाग को ग्रसित कर देता है। एक लेंटेंट टीबी होता है जिसमें टीबी की बैक्टीरिया शरीर में मौजूद होती हैं लेकिन उनमें लक्षण स्पष्ट रूप से नहीं दिखते हैं। लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर इसका असर उभर कर देखने को मिल सकता है। वहीं कुछ स्पष्ट दिखने वाले लक्षणों से टीबी रोगियों का पता चल पाता है। जिले के सभी सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क टीबी जांच और उपचार सुविधा उपलब्ध है जिसका ग्रसित लोगों को लाभ उठाना चाहिए।

ये लक्षण दिखें तो करायें टीबी जांच :

-तीन सप्ताह या इससे अधिक समय से खांसी रहना, छाती में दर्द, कफ में खून आना।
-कमजोरी व थका हुआ महसूस करना।
-वजन का तेजी से कम होना।
-भूख नहीं लगना, ठंड लगना, बुखार का रहना, रात को पसीना आना इत्यादि।

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