ऐसी औलाद जो अपने बाप के शव को लेने से मना कर दिया!
कसया, जितेंद्र प्रजापति कुशीनगर बृद्धाश्रम में भगवान ऐसी औलाद और परिवार किसी को न दे, जो अपने ही बाप के शव को लेने से मना कर दी एक अजीब गरीब कहानी देखने को मिला आप इस युग में आप क्या कह सकते
जाने ये जीता जगता उदाहरण एक बाबा बसंत चौधरी रहते थे। अपने परिवार के कारण ही बृद्धाश्रम में रहने को मजबूर हुए। जनपद कुशीनगर के ही एक ग्रामसभा के निवासी थे। विगत दिनों उनकी तबियत खराब हुई और संचालक विकास श्रीवास्तव के देख रेख में बाबा जिला अस्पताल से रेफर होने के बाद मेडिकल कॉलेज ICU में भर्ती हुए। लगभग 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रहे और भर्ती के दौरान एक ही रट लगाए रहे की मेरे बेटे को बुला दीजिये अंतिम बार उसे देख लूं विकास ने बाबा के बेटे एवं परिजन को इसकी सूचना दी लेकिन कोई मिलने तक नही आया आखिरकार बाबा 10 दिनों तक जिंदगी की जंग लड़ते लड़ते और बेटे की राह देखते देखते मेडिकल कॉलेज में ही अंतिम सांस ले ली। फिर विकास जी ने परिजन को सूचना दिए कि बाबा अब इस दुनिया में नहीं रहे। तब भी बेटे और परिजन ने शव लेने और अंतिम संस्कार करने से मना कर दिए।
इस विकट परिस्तिथि में विकास ने मुझे फोन किया और घटनाक्रम से अवगत कराया फिर क्या था हम और स्माइल रोटी बैंक से बड़े भाई श्रीकृष्ण पाण्डेय आज़ाद पांडेय अपनी स्माइल वैन लेकर मेडिकल कॉलेज पहुँचे और बाबा के शव को गाड़ी में रखकर के इस चिलचिलाती धूप में अंतिम संस्कार हेतु गोरखपुर के राजघाट पहुँचे। जहां लकड़ी एवं अन्य सामग्री खरीदकर हम लोगो ने हिन्दू विधिविधान से बाबा का अंतिम संस्कार किए।
यह घटना मन को अंदर से विचलित कर दे रही है कि समाज किस ओर जा रहा है? यह बहुत ही भयावह स्तिथि है। सच है कि संस्कारों को रौंद कर कभी भी सुंदर समाज की स्थापना नहीं हो सकती है। इसीलिए पुत्र के लिए कहा गया है कि
पूत सपूत त का धन संचय,
अगर पूत कपूत त का धन संचय