
पति के सुहाग की कामना के लिए
महिलाए वट वृक्ष की पूजा करती
पटनासिटी(खौफ 24): सुहागिन महिलाये अखंड शौभाग्यवती होने एवं पति के स्वस्थ के लिए आज के दिन वट बृक्ष की पूजा करती है, इसके लिए महिलाएं सुवह से उपवाश रहकर वट वृक्ष में फेरी लगा कर धागा बांधती है।साथ ही वृक्ष के आयु की तरह अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती है ! यह नजारा है ,पटना सिटी काली स्थान,चौक शिकारपुर जहाँ सुबह से ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महिलाये वट वृक्ष की पूजा कर रही है। बताया जाता है पतिवर्ता स्त्री सावित्री ने अपने पति की प्राण हरने आये यमराज से जिद्द कर वट वृक्ष के निचे ही अपने पति के प्राण बापस लौटा ली थी ! उसी पौराणिक कथाओ पर आज भी महिलाए व्रत कर वट वृक्ष की पूजा करती है और अपने पति के सुहाग को अमर रहने की कामना करती है !
इस वर्त का जानिए महत्व
वट सावित्री व्रत होता है कैसे खास, जानिए विधान अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला वट सावित्री का पर्व 19 मई को मनाया जाएगा. यानी शुक्रवार को वट सावित्री पूजा 2023 सुहागिन करेंगी. इस दिन सोमवती अमावस्या भी है।इस दिन सुहागन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन के लिए व्रत रखती है. नवविवाहिताएं पहली बार पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखेंगी. महिलाओं ने वट सावित्री व्रत व पूजन से संबंधित सामग्री की खरीद की. मिथिला में नवविवाहिता पहली बार विधि विधान से पूजा करती है. सभी पूजन सामग्री उनके ससुराल से आता है.
उस दिन ससुराल से आए कपड़े व गहने पहनकर नवविवाहिताएं वट वृक्ष की पूजा करती है और कथा सुनती है.मिलेगा अखंड सुहाग का वरदान पंडित बताते हैं कि सनातन धर्म के ग्रंथ ब्रह्मवैवर्त पुराण व स्कंद पुराण के हवाले से बताया है कि वट सावित्री की पूजा व वटवृक्ष की परिक्रमा करने से सुहागिनों को अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख शांति व वैवाहिक जीवन में आने वाले कष्ट दूर होते हैं. पूजा के बाद भक्ति पूर्वक सत्यवान सावित्री की कथा का श्रवण और वाचन करना चाहिए. इससे परिवार पर आने वाली सभी बाधाएं दूर होती है
तथा घर में सुख समृद्धि का वास होता है।विधान पूर्वक होता है पूजा इस दिन सुहागिन महिलाएं पहले सुबह उठकर स्नान कर नव वस्त्र धारण कर सज धज कर वट वृक्ष के पास पहुंचती है. मिथिला में चरखा से तैयार किए गए सूत के साथ महिलाएं वटवृक्ष की परिक्रमा करती है. ससुराल से भार आता है. लिहाजा नवविवाहिताओं के घर दो दिन पहले से ही उत्सवी वातावरण नजर आ रहा है. इस दिन बांस से बने बेना लेकर विधि-विधान पूर्वक पूजा अर्चना करती हैं. उसके बाद महिलाएं कथा सुनती हैं. बुजुर्ग महिलाएं कथा वाचन करती है. इस दिन आम, लीची व अंकुरित चना के प्रसाद का विशेष महत्व होता है.
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