
उच्च मातृ-शिशु मृत्यु दर वाले अररिया जिले के लिये विशेष महत्व रखता है अभियान
अररिया, रंजीत ठाकुर : अररिया स्वस्थ मां व सेहतमंद बच्चे किसी परिवार व समुदाय की खुशहाली का आधार है। जो हम सभी को एक बेहतरीन भविष्य के प्रति आशावान बनाता है। 07 अप्रैल को मनाया जाने वाला विश्व स्वास्थ्य दिवस इस मायने में हमारे लिये बेहद खास साबित होने वाला है। वो इसलिये कि मौके पर इस बार मातृ व नवजात स्वास्थ्य पर केंद्रित साल भर चलने वाले विशेष अभियान की शुरूआत होने वाली है। स्वस्थ शुरूआत, आशाजनक भविष्य की थीम पर आयोजित साल भर चलने वाला यह अभियान रोके जा सकने वाले मां व नवजात के मृत्यु संबंधी मामलों को खत्म करने संबंधी प्रयासों को तेज करने व महिलाओं के दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर केंद्रित हेागा।
सघन आबादी, उच्च प्रजनन दर, गरीबी, अशिक्षा व कम उम्र में युवतियों की शादी सहित अन्य वजहों से उच्च मातृ व शिशु मृत्यु दर वाले अररिया जिले के लिये यह अभियान खासतौर पर महत्व रखता है। मातृ-शिशु मृत्यु दर पर नियंत्रण विभाग की प्राथमिकता डीपीएम स्वास्थ्य संतोष कुमार ने बताया कि स्वस्थ शुरूआत, आशाजनक भविष्य की थीम पर साल भर चलने वाला यह अभियान उच्च मातृ व शिशु मृत्यु दर वाले अररिया जिले के लिये विशेष महत्व रखता है। जिले का मातृ मृत्यु दर यानी एमएमआर रेट 177 है।
वहीं नवजात मृत्यु दर यानी आईएमआर 43 है। एमएमआर प्रति 01 लाख जीवित बर्थ पर होने वाले महिलाओं की मौत को दर्शाता है। वहीं आईएमआर प्रति 01 हजार बच्चों के जन्म पर होनी वाली मौत को दर्शाता है। हाल के दिनों में इस नियंत्रित करने के उद्देश्य से विभागीय स्तर से कई जरूरी पहल किये गये हैं। मातृ-शिशु अस्पताल का संचालन, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैश एसएनसीयू व पीएमएसएमए अभियान को अधिक प्रभावी व उपयोगी बनाने पर विशेष जोर दिया जाना विभाग के इसी पहल का हिस्सा है।
प्रसव के दौरान या इसके तत्काल बाद होती है सबसे अधिक मौत सदर अस्पताल के वरीय चिकित्सक डॉ राजेंद्र कुमार ने कहा कि मातृ मृत्यु संबंधी करीब 10 प्रतिशत मामले प्रसव से पहले घटित होते हैं। वहीं मौत संबंधी 40 फीसदी मामले प्रसव के दौरान या इसके तत्काल बाद घटित होते हैं। करीब 30 फीसदी मामले प्रसव के बाद व करीब 20 फीसदी मामले प्रसव के 42 दिनों के अंदर घटित होते हैं। इसी तरह नवजात मृत्यु से संबंधित मामलों में 10 फीसदी मौत प्रसव से पहले, प्रसव के दौरान या इसके तुरंत बाद 40 फीसदी मौत व प्रसव के 01 से 07 दिन के अंदर 30 फीसदी व प्रसव के 42 दिन के अंदर मौत के 20 प्रतिशत मामले घटित होते हैं। इसमें से तकरीबन 07 फीसदी मौत संबंधी मामलों को रोका जा सकता है।
विशेष अभियान से विभागीय प्रयासों को मिलेगी मजबूती
सिविल सर्जन डॉ केके कश्यप ने बताया कि मातृ-शिशु मृत्यु संबंधी मामलों को नियंत्रित करने के लिये कई महत्वपूर्ण पहल किये जा रहे हें। प्रथम तिमाही में गर्भवती महिलाओं को चिह्नित करने, प्रसव पूर्व चार जांच सुनिश्चित कराने, संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करने व मौत संबंधी मामलों की रिपेार्टिंग ताकि इसके सही कारणों का पता लगाकार इसकी पुनर्रावृति को रोकने जैसी पहल इसमें शामिल है। 07 अप्रैल यानी विश्व स्वास्थ्य दिवस से शुरू हो रहे विशेष अभियान की मदद से इससे संबंधित प्रयासों में तेजी आने का भरोसा उन्होंने जताया।