लुगू बाबा का दर्शन करने नेपाल से पहुंचा 121 श्रद्धालुओं का जत्था
बोकारो(खौफ 24): ललपनिया स्थित लुगू बुरु घंटा बाड़ी धोरोम गाढ़ में राजकीय महोत्सव के अवसर पर देश और विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे. धर्म महासम्मेलन के पहले दिन श्रद्धालु 7 किलोमीटर पहाड़ पर चढ़कर लुगू बाबा की गुफा में पूजा-अर्चना करने के लिए लोग हैं. इसी क्रम में सम्मेलन के पहले दिन देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा नेपाल और भूटान से भी श्रद्धालु यहां पहुंचे. इसके साथ ही आसाम विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष पृथ्वी मांझी, पद्म विभूषण से सम्मानित मुकुंद नायक भी इस सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे. पृथ्वी मांझी यहां विशिष्ट अतिथि की हैसियत से पहुंचे. उन्होंने कहा कि लुगू बुरु घंटा बाड़ी में आदिवासी समाज के लिए भाषा, संस्कृति, धर्म रहन-सहन, खान-पान और जीवनशैली से लेकर मरण तक के रीति-रिवाज का निरूपण किया गया था. यह बात अलग है
कि आज से 22 साल पहले लोगों को यह जानकारी व्यापक रूप में हुई. उन्होंने कहा कि यही वह स्थान है, जहां आदिवासियों के लिए संविधान लिखा गया था. वैसे तो आदिवासी लोकगीतों में लुगू बाबा की चर्चा होती रही है. जब पूरी दुनिया में लोगों के लिए ना कोई रीति-रिवाज या कायदे कानून बने थे. उस समय लुगू बुरु में आदिवासियों के लिए इसका निरूपण किया गया. यह कार्य चार हजार वर्ष पहले हुआ था. उस दौरान 12 वर्षों तक इसी ललपनिया में लुगू बुरु के संस्थापकों ने कायदे कानून बनाए थे. इसलिए आज भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया से लोग इस धरती को नमन करने आते हैं. दो दिवसीय धर्म महासम्मेलन को लेकर समिति के लोग पूरी तत्परता के साथ विधि-व्यवस्था को लेकर सजग हैं. वहीं जिला प्रशासन ट्रैफिक से लेकर श्रद्धालुओं के रहने से लेकर खाने पीने की मुकम्मल व्यवस्था की है.
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन है, जबकि अन्य मंत्री और जनप्रतिनिधि विशिष्ट अतिथि के रूप में मंगलवार को शामिल होंगे. यहां पहले दिन ही हजारों की संख्या में लोग पहुंचे. नेपाल से आए वीरेंद्र मांझी ने कहा कि लुगू बाबा की चर्चा नेपाल में भी है. वह 2 साल पहले भी यहां पहुंचे थे और इस बार 121 लोगों का जत्था लेकर यहां दर्शन के लिए पहुंचे हैं. शर्मिली ने कहा कि यहां आकर वह बहुत खुश हैं. लुगू बाबा का यह पूज्य धरती है, जहां उन्हें नमन करने का अवसर प्राप्त हुआ है. वह कहती हैं कि यहां आकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही हूं. आदिवासियों का यह महान तीर्थ स्थल है. इसलिए हर वर्ष हुए यहां पहुंचने के लिए ललायीत रहते हैं.