विश्वविद्यालय परिसर के आकर्षण का केन्द्र बना हैरेडियो

भागलपुर, (खौफ 24) बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर के सामुदायिक रेडियो की अनोखी पहल ढाई सौ एकड़ में फैले विश्वविद्यालय परिसर के आकर्षण का केन्द्र बना है. यहाँ लोग दिन हो या रात कार्यक्रम सुनते रहते हैं. विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन के पास मुख्य मार्ग पर स्थापित धातु निर्मित लगभग एक क्विंटल वजन वाले पाँच फीट चौड़े और तीन फीट लम्बे इस अनोखे रेडियो को छात्र-किसान और कृषि वैज्ञानिक दूर-दूर से देखने-सुनने आते हैं. यह उनके लिए सेल्फी लेने का हॉट-स्पॉट भी बना हुआ है. यू-ट्यूबरों के बीच भी इसका गजब का क्रेज है. पूसा के बाद राज्य के दूसरे विश्वविद्यालय के रूप में वर्ष 2010 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने अपने नवाचारी प्रयासों से सामुदायिक रेडियो की उपयोगिता और उत्सुकता को सकारात्मक दिशा दी है. सामुदायिक रेडियो 90.8 एफएम ग्रीन के पांचवें स्थापना दिवस पर 5 अगस्त 2024 को इस अनोखे रेडियो सेट को लगाया गया. उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त 2019 को एफ एम ग्रीन की स्थापना हुई थी.

90.8 एफएम ग्रीन “ब्राण्ड नाम” वाले भागलपुर के इस सामुदायिक रेडियो स्टेशन से चौबीस घंटे प्रसारण होता है. इसमें लगभग आधे कार्यक्रम कृषि आधारित होते है जिसमें किसानों को कृषि की नवीनतम तकनीकों की जानकारी, पशुपालन, चारा उत्पादन, सामाजिक सहभागिता पराली प्रबंधन, मशरुम की खेती एवं कचरा प्रबंधन के बारे में अद्यतन जानकारी दी जाती है. इसके अलावा, लगभग एक तिहाई प्रसारण सामाजिक विषयों और ज्ञान-विज्ञान पर आधारित होते हैं. शेष भाग में स्थानीय भाषा-संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम होते हैं. इस सामुदायिक रेडियो के प्रबंधन ने अब स्वास्थ्य संबंधी जागरूकतापरक कार्यक्रम बनाने और उसे प्रसारित करने की भी योजना बनायी है.

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इसके तहत चिकित्सकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों और स्वास्थ्य अधिकारियों से विशेष साक्षात्कार, स्वास्थ्य संबंधी अद्यतन सूचनाओं का प्रसारण तथा रोग विशेष के कारण और निदान पर केन्द्रित विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाएगा.
रेडियो सेट पर लगा है बार कोड और एलईडी लाइट
सामुदायिक रेडियो 90.8 एफएम ग्रीन के केन्द्र प्रभारी एवं प्रस्तुतकर्ता ईश्वर चन्द्र बताते हैं कि इस रेडियो सेट पर बारकोड लगा है जिसे कोई भी आसानी से स्कैन कर हमारे पोडकास्ट को कभी भी और कहीं भी अपने मोबाइल पर सुन सकता है. इसमें एलईडी लाइट लगे हैं जिससे अँधेरे में भी यह चमकता रहता है. धातु का बना है इसलिए इस पर धूप-गर्मी-बरसात का कोई असर नहीं पड़ता है. उन्होंने बताया कि सन 2000 के बाद पैदा हुए जो बच्चे रेडियो से वाकिफ नहीं हैं और जिन्हें केवल मोबाइल फोन पर ही चीजों को देखना-सुनना पसंद है, ऐसे “मिलेनियम बेबीज” के लिए रेडियो से जुड़ने में यह पहल सहायक हो रहा है. उन्होंने बताया कि रेडियो के बारे में युवाओं की राय जानने के लिए 500 लोगों के बीच सैंपल सर्वे किया गया था जिसमें रेडियो के बारे में उनकी जानकारी नगण्य थी.

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विभिन्न अवसर पर किया जाता है प्रचार-प्रसार
केन्द्र प्रभारी ईश्वर चन्द्र ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर एवं अन्य अवसरों पर सेल्फी पॉइंट बनाकर इस “रेडियो चौराहा” का प्रचार-प्रसार भी किया जाता है. विश्वविद्यालय के वार्षिक किसान मेला में भी रेडियो सेल्फी पॉइंट बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक “रेडियो चौराहा” के तकनीकी टीम का हिस्सा हैं. उनसे नियमित संवाद कर रेडियो की संचार सामग्रियों को बेहतर किया जाता है. उन्होंने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय, कटिहार में भी एक सामुदायिक रेडियो स्थापित करने की योजना है.

उल्लेखनीय है कि विश्वविद्यालय बनाने से पूर्व सबौर का यह केन्द्र महाविद्यालय के रूप में कार्यरत था. बिहार कृषि महाविद्यालय, सबौर 1905 और 1908 के बीच देश में स्थापित छह कृषि महाविद्यालयों में से एक है, जिसने देश में व्यवस्थित कृषि शिक्षा में बहुत बड़ा योगदान दिया है. इसकी स्थापना में बंगाल के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एंड्रयू हेंडरसन लीथ फ्रेजर का बड़ा योगदान था. वर्ष 2010 में विश्वविद्यालय बनने के बाद सूबे के 6 कॉलेज (5 कृषि और 1 बागवानी) तथा 3 कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रों में फैले 13 अनुसंधान केंद्र सम्बद्ध हैं. विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में आने वाले 25 जिलों में से 20 केवीके भी स्थापित हैं.

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